आँखे

तुम कहते हो आँख है ये,
कुछ शब्द इसी पर लिख जाओ,
लिखते लिखते शब्दों को,
वो प्यार गहराता दिखता है|
तुम जैसी चाहत हो तो,
आँखों की गहरायी में,
झीलों के हंसों का जोड़ा,
ख़्वाब संजोता दिखता है|

तुम कहते हो झूठ हो तुम,
ये अश्क़ नहीं है पानी है|
हम पानी के अर्थ भी लिख देते,
वो नीर हमें भी दिखता है |
नीरज सा जो खिलता है,
इन काली गहरी आँखों में|
कुछ भी कहो तुम हमको तो,
वो लाल गुलाबी दिखता है|

आँखें तेरी हिरणी सी,
जब इत उत सी यूँ डोले है|
दिल में मेरे तेरे लिए,
वो प्यार सुनहरा उठता है|
झील सी तेरी आँखें है,
और हँस सी मेरी बातें है|
इन पर शब्दों को लिखने से,
ग़ज़लों सा वो दिखता है|

गहरी सी उन आँखों में,
एक राज सुनहरा दिखता है।
पलकों के उन बालों में वो,
अश्क़ सुनहरा दिखता है।
काली झील सी आँखों में,
वो अश्कों के जो मोती हैं।
उन बिन टपके से अश्कों का,
वो ख़्वाब सुनहरा दिखता है।

नीरज “मनन”

Published by Neeraj Sahal

n the realm of Hindi poetry, Neeraj desires to leave a mark on the hearts, minds and souls of his cherished readers. Neeraj Sahal, a resident of Mumbai, was born in Rajgarh, Rajasthan on 19th December 1977. His literary influence has a wide spectrum, both in Hindi and Urdu, and from mythology, great epics to ghazals.

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