उस रोज़ दिवाली हो जाए जिस रोज़ तुम मिलने आ जाओ…।

तुम संग ख़ुशियों के मेले थे, वो दीप जले क्या गहरे थे।
दीप की थाली थाम तभी, उजली आभा के चेहरे थे।
ख़ुशियों को भरकर अंजुल में, तुम देहरी पर दीप जला जाओ।
उस रोज़ दिवाली हो जाए, जिस रोज़ तुम मिलने आ जाओ।

वो प्यार भरी सौग़ातों से , तुम प्यार की आभा करते थे।
अधरों पर अधर रखे तुमने, हम ग़ज़ल की रचना करते थे।
मेरे ग़ज़लों के शब्द ढूँढ, तुम कलम को लेकर आ जाओ।
उस रोज़ दिवाली हो जाए, जिस रोज़ तुम मिलने आ जाओ।

वो गहरी काली सी रातें थी, जो तेरे बिन गुजरा करती थी।
अमावस की गहरी रातें थी, वो चंदा को तरसा करती थी।
अमावस की काली रात में अब, दीपों की आभा भर जाओ।
उस रोज़ दिवाली हो जाए, जिस रोज़ तुम मिलने आ जाओ।

उस साल दिवाली के दिन भी, वो प्रेम का दीप जलाया था।
हाथों संग लेकर थाली को, दीपक देहरी पर सजाया था।
फ़िर संग हाथों को थामें , अब वही दिया जलाने आ जाओ।
उस रोज़ दिवाली हो जाए, जिस रोज़ तुम मिलने आ जाओ।

कान्हा संग राधा का तब वो, अद्भुत सा नृत्य हुआ था जब।
बँसी की धुन को सुनकर तब , राधा ने प्रेम किया था जब।
राधा कृष्णा सा साथ लिए, वही रास रचाने आ जाओ।
उस रोज़ दिवाली हो जाए, जिस रोज़ तुम मिलने आ जाओ।

राधा का श्याम, सिया का राम, लेकर तुम पिया का नाम।
प्रेम मिलन का गीत लिए, दीपों के उजियारे का काम।
अंधकार को मिटा जाओ, प्रेम का दीप जला जाओ।
उस रोज़ दिवाली हो जाए, जिस रोज़ तुम मिलने आ जाओ।

नीरज “मनन”

Published by Neeraj Sahal

n the realm of Hindi poetry, Neeraj desires to leave a mark on the hearts, minds and souls of his cherished readers. Neeraj Sahal, a resident of Mumbai, was born in Rajgarh, Rajasthan on 19th December 1977. His literary influence has a wide spectrum, both in Hindi and Urdu, and from mythology, great epics to ghazals.

Leave a comment